कुछ ही समय पहले जनतंत्र की जन-आकांक्षा के प्रतीक के रूप में मिस्र के
राष्ट्रपति बने मोहम्मद मुर्सी अब अपने मुल्क में गहरे मतभेद का कारण बन गए
हैं। संविधान लेखन के क्रम में सारी सत्ता अपने हाथ में लेने की कोशिश कर
उन्होंने देश में नई अशांति पैदा कर दी है।
इस पर शुरुआती विरोध जताने के बाद न्यायपालिका ने तो उनसे समझौता कर
लिया, लेकिन जनमत का एक बड़ा हिस्सा अपना प्रतिरोध रोकने को तैयार नहीं है।
मुर्सी ने पिछले हफ्ते अधिघोषणा जारी कर संविधान लेखन के दौरान
न्यायपालिका के हस्तक्षेप का अधिकार छीन लिया। तब से उन पर तानाशाह बनने की
कोशिश करने के आरोप लगे हैं।
वे हजारों लोग, जो पिछले साल होस्नी मुबारक की तानाशाही के खिलाफ
संघर्ष में मुर्सी और उनके पैतृक संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ मिलकर लड़े
थे, इस बार मुर्सी के विरोध में आंदोलन करने पर मजबूर हुए हैं। इन लोगों
का आरोप है कि राष्ट्रपति बनने के बाद मुर्सी पूरे मिस्र का नेता बनने के
बजाय मुस्लिम ब्रदरहुड के एजेंडे पर चल रहे हैं। इसीलिए जब उन्होंने यह
आदेश जारी किया कि संविधान सभा के किसी निर्णय में न्यायपालिका दखल नहीं दे
सकेगी, तो इसका निहितार्थ यह माना गया कि वे मुस्लिम ब्रदरहुड की
कट्टरपंथी विचारधारा से प्रेरित संविधान की तैयारी का रास्ता साफ कर रहे
हैं।
नतीजतन प्रगतिशील एवं धर्मनिरपेक्ष संगठनों ने जन-प्रतिरोध का रास्ता
अख्तियार कर लिया, जिसमें कई जानें जा चुकी हैं। इस बीच विरोध को ठंडा करने
के मकसद से मुर्सी ने न्यायपालिका से समझौता कर लिया। न्यायपालिका ने उनकी
इस व्याख्या को मान लिया है कि उनकी अधिघोषणा सिर्फ ‘संप्रभु’ मुद्दों तक
सीमित है, जिसका अर्थ है कि न्यायपालिका संविधान सभा और उच्च सदन शूरा
कौंसिल को भंग नहीं कर सकेगी। लेकिन जनमत का एक बड़ा हिस्सा इस व्याख्या को
स्वीकार करने को तैयार नहीं है।
बहरहाल, मिस्र की ताजा घटनाएं यह संदेश जरूर देती हैं कि वहां के
लोगों में जनतंत्र की आकांक्षा महज तात्कालिक आवेग नहीं थी, बल्कि सत्ता
हथियाने की हर कोशिश के खिलाफ लोग जाग्रत हैं और इसके लिए कुर्बानी देने को
तैयार हैं। यह भावना मिस्र में लोकतंत्र के अच्छे भविष्य के प्रति आश्वस्त
करती है।
राष्ट्रपति बने मोहम्मद मुर्सी अब अपने मुल्क में गहरे मतभेद का कारण बन गए
हैं। संविधान लेखन के क्रम में सारी सत्ता अपने हाथ में लेने की कोशिश कर
उन्होंने देश में नई अशांति पैदा कर दी है।
इस पर शुरुआती विरोध जताने के बाद न्यायपालिका ने तो उनसे समझौता कर
लिया, लेकिन जनमत का एक बड़ा हिस्सा अपना प्रतिरोध रोकने को तैयार नहीं है।
मुर्सी ने पिछले हफ्ते अधिघोषणा जारी कर संविधान लेखन के दौरान
न्यायपालिका के हस्तक्षेप का अधिकार छीन लिया। तब से उन पर तानाशाह बनने की
कोशिश करने के आरोप लगे हैं।
वे हजारों लोग, जो पिछले साल होस्नी मुबारक की तानाशाही के खिलाफ
संघर्ष में मुर्सी और उनके पैतृक संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ मिलकर लड़े
थे, इस बार मुर्सी के विरोध में आंदोलन करने पर मजबूर हुए हैं। इन लोगों
का आरोप है कि राष्ट्रपति बनने के बाद मुर्सी पूरे मिस्र का नेता बनने के
बजाय मुस्लिम ब्रदरहुड के एजेंडे पर चल रहे हैं। इसीलिए जब उन्होंने यह
आदेश जारी किया कि संविधान सभा के किसी निर्णय में न्यायपालिका दखल नहीं दे
सकेगी, तो इसका निहितार्थ यह माना गया कि वे मुस्लिम ब्रदरहुड की
कट्टरपंथी विचारधारा से प्रेरित संविधान की तैयारी का रास्ता साफ कर रहे
हैं।
नतीजतन प्रगतिशील एवं धर्मनिरपेक्ष संगठनों ने जन-प्रतिरोध का रास्ता
अख्तियार कर लिया, जिसमें कई जानें जा चुकी हैं। इस बीच विरोध को ठंडा करने
के मकसद से मुर्सी ने न्यायपालिका से समझौता कर लिया। न्यायपालिका ने उनकी
इस व्याख्या को मान लिया है कि उनकी अधिघोषणा सिर्फ ‘संप्रभु’ मुद्दों तक
सीमित है, जिसका अर्थ है कि न्यायपालिका संविधान सभा और उच्च सदन शूरा
कौंसिल को भंग नहीं कर सकेगी। लेकिन जनमत का एक बड़ा हिस्सा इस व्याख्या को
स्वीकार करने को तैयार नहीं है।
बहरहाल, मिस्र की ताजा घटनाएं यह संदेश जरूर देती हैं कि वहां के
लोगों में जनतंत्र की आकांक्षा महज तात्कालिक आवेग नहीं थी, बल्कि सत्ता
हथियाने की हर कोशिश के खिलाफ लोग जाग्रत हैं और इसके लिए कुर्बानी देने को
तैयार हैं। यह भावना मिस्र में लोकतंत्र के अच्छे भविष्य के प्रति आश्वस्त
करती है।