रविवार, 19 जून 2011

रेत की जरुरत रेगिस्तानो को होती है, तारो की जरुरत आसमानो को होती है,

रेत की जरुरत रेगिस्तानो को होती है,
तारो की जरुरत आसमानो को होती है,
अरे यारो भूल न जाना मात्रभूमि की रक्षा के लिए जरुरत जवानो कि होती है॥
हर वक्त तेरे नाम कर देगे,
हर वक्त तेरी सेवा मे कुर्बान कर देगे
जिस दिन होगी
मात्रभूमि की सेवा मे कमी,
 भगवान कसम जिन्दगी मौत के नाम कर देगे॥
किसी कि
चाहत होती है तारो को पाने की, 
हमारी चाहत है तारे बन जाने की।
गद्दारो की
चाहत होती है मात्रभूमि को लुटने की,
मगर हमारी चाहत है मात्रभूमि की लाज
बचाने की॥

Madhushala-

अपने युग में सबको अनुपम ज्ञात हुई अपनी हाला,
अपने युग में सबको अदभुत ज्ञात हुआ अपना प्याला,
फिर भी वृद्धों से जब पूछा एक यही उज्ञल्तऌार पाया -
अब न रहे वे पीनेवाले, अब न रही वह मधुशाला!।१२५।

'मय' को करके शुद्ध दिया अब नाम गया उसको, 'हाला'
'मीना' को 'मधुपात्र' दिया 'सागर' को नाम गया 'प्याला',
क्यों न मौलवी चौंकें, बिचकें तिलक-त्रिपुंडी पंिडत जी
'मय-महिफल' अब अपना ली है मैंने करके 'मधुशाला'।।१२६।

कितने मर्म जता जाती है बार-बार आकर हाला,
कितने भेद बता जाता है बार-बार आकर प्याला,
कितने अर्थों को संकेतों से बतला जाता साकी,
फिर भी पीनेवालों को है एक पहेली मधुशाला।।१२७।

जितनी दिल की गहराई हो उतना गहरा है प्याला,
जितनी मन की मादकता हो उतनी मादक है हाला,
जितनी उर की भावुकता हो उतना सुन्दर साकी है,
जितना ही जो रिसक, उसे है उतनी रसमय मधुशाला।।१२८।

जिन अधरों को छुए, बना दे मस्त उन्हें मेरी हाला,
जिस कर को छूू दे, कर दे विक्षिप्त उसे मेरा प्याला,
आँख चार हों जिसकी मेरे साकी से दीवाना हो,
पागल बनकर नाचे वह जो आए मेरी मधुशाला।।१२९।

हर जिहवा पर देखी जाएगी मेरी मादक हाला
हर कर में देखा जाएगा मेरे साकी का प्याला
हर घर में चर्चा अब होगी मेरे मधुविक्रेता की
हर आंगन में गमक उठेगी मेरी सुरिभत मधुशाला।।१३०।

मेरी हाला में सबने पाई अपनी-अपनी हाला,
मेरे प्याले में सबने पाया अपना-अपना प्याला,
मेरे साकी में सबने अपना प्यारा साकी देखा,
जिसकी जैसी रुिच थी उसने वैसी देखी मधुशाला।।१३१।

यह मदिरालय के आँसू हैं, नहीं-नहीं मादक हाला,
यह मदिरालय की आँखें हैं, नहीं-नहीं मधु का प्याला,
किसी समय की सुखदस्मृति है साकी बनकर नाच रही,
नहीं-नहीं किव का हृदयांगण, यह विरहाकुल मधुशाला।।१३२।

कुचल हसरतें कितनी अपनी, हाय, बना पाया हाला,
कितने अरमानों को करके ख़ाक बना पाया प्याला!
पी पीनेवाले चल देंगे, हाय, न कोई जानेगा,
कितने मन के महल ढहे तब खड़ी हुई यह मधुशाला!।१३३।

विश्व तुम्हारे विषमय जीवन में ला पाएगी हाला
यदि थोड़ी-सी भी यह मेरी मदमाती साकीबाला,
शून्य तुम्हारी घड़ियाँ कुछ भी यदि यह गुंजित कर पाई,
जन्म सफल समझेगी जग में अपना मेरी मधुशाला।।१३४।

बड़े-बड़े नाज़ों से मैंने पाली है साकीबाला,
किलत कल्पना का ही इसने सदा उठाया है प्याला,
मान-दुलारों से ही रखना इस मेरी सुकुमारी को,
विश्व, तुम्हारे हाथों में अब सौंप रहा हूँ मधुशाला।।१३५।

पिरिशष्ट से

स्वयं नहीं पीता, औरों को, किन्तु पिला देता हाला,
स्वयं नहीं छूता, औरों को, पर पकड़ा देता प्याला,
पर उपदेश कुशल बहुतेरों से मैंने यह सीखा है,
स्वयं नहीं जाता, औरों को पहुंचा देता मधुशाला।

मैं कायस्थ कुलोदभव मेरे पुरखों ने इतना ढ़ाला,
मेरे तन के लोहू में है पचहज्ञल्तऌार प्रतिशत हाला,
पुश्तैनी अधिकार मुझे है मदिरालय के आँगन पर,
मेरे दादों परदादों के हाथ बिकी थी मधुशाला।

बहुतों के सिर चार दिनों तक चढ़कर उतर गई हाला,
बहुतों के हाथों में दो दिन छलक झलक रीता प्याला,
पर बढ़ती तासीर सुरा की साथ समय के, इससे ही
और पुरानी होकर मेरी और नशीली मधुशाला।

पित्र पक्ष में पुत्र उठाना अर्ध्य न कर में, पर प्याला
बैठ कहीं पर जाना, गंगा सागर में भरकर हाला
किसी जगह की मिटटी भीगे, तृप्ति मुझे मिल जाएगी
तर्पण अर्पण करना मुझको, पढ़ पढ़ कर के मधुशाला।
- बच्चन

Madhushala- bachchan

मधुशाला
मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।१।

प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।।२।

प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।।३।

भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।।४।

मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला,
भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला,
उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ,
अपने ही में हूँ मैं साकी, पीनेवाला, मधुशाला।।५।

मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला,
'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -
'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।'। ६।

चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!
'दूर अभी है', पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला,
हिम्मत है न बढूँ आगे को साहस है न फिरुँ पीछे,
किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला।।७।

मुख से तू अविरत कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला,
हाथों में अनुभव करता जा एक ललित कल्पित प्याला,
ध्यान किए जा मन में सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का,
और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको दूर लगेगी मधुशाला।।८।

मदिरा पीने की अभिलाषा ही बन जाए जब हाला,
अधरों की आतुरता में ही जब आभासित हो प्याला,
बने ध्यान ही करते-करते जब साकी साकार, सखे,
रहे न हाला, प्याला, साकी, तुझे मिलेगी मधुशाला।।९।

सुन, कलकल़ , छलछल़ मधुघट से गिरती प्यालों में हाला,
सुन, रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला,
बस आ पहुंचे, दुर नहीं कुछ, चार कदम अब चलना है,
चहक रहे, सुन, पीनेवाले, महक रही, ले, मधुशाला।।१०।

जलतरंग बजता, जब चुंबन करता प्याले को प्याला,
वीणा झंकृत होती, चलती जब रूनझुन साकीबाला,
डाँट डपट मधुविक्रेता की ध्वनित पखावज करती है,
मधुरव से मधु की मादकता और बढ़ाती मधुशाला।।११।

मेंहदी रंजित मृदुल हथेली पर माणिक मधु का प्याला,
अंगूरी अवगुंठन डाले स्वर्ण वर्ण साकीबाला,
पाग बैंजनी, जामा नीला डाट डटे पीनेवाले,
इन्द्रधनुष से होड़ लगाती आज रंगीली मधुशाला।।१२।

हाथों में आने से पहले नाज़ दिखाएगा प्याला,
अधरों पर आने से पहले अदा दिखाएगी हाला,
बहुतेरे इनकार करेगा साकी आने से पहले,
पथिक, न घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुशाला।।१३।

लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला,
फेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला,
दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी हैं,
पीड़ा में आनंद जिसे हो, आए मेरी मधुशाला।।१४।

जगती की शीतल हाला सी पथिक, नहीं मेरी हाला,
जगती के ठंडे प्याले सा पथिक, नहीं मेरा प्याला,
ज्वाल सुरा जलते प्याले में दग्ध हृदय की कविता है,
जलने से भयभीत न जो हो, आए मेरी मधुशाला।।१५।

बहती हाला देखी, देखो लपट उठाती अब हाला,
देखो प्याला अब छूते ही होंठ जला देनेवाला,
'होंठ नहीं, सब देह दहे, पर पीने को दो बूंद मिले'
ऐसे मधु के दीवानों को आज बुलाती मधुशाला।।१६।

धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला,
मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,
पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदों को जो काट चुका,
कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।।१७।

लालायित अधरों से जिसने, हाय, नहीं चूमी हाला,
हर्ष-विकंपित कर से जिसने, हा, न छुआ मधु का प्याला,
हाथ पकड़ लज्जित साकी को पास नहीं जिसने खींचा,
व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला।।१८।

बने पुजारी प्रेमी साकी, गंगाजल पावन हाला,
रहे फेरता अविरत गति से मधु के प्यालों की माला'
'और लिये जा, और पीये जा', इसी मंत्र का जाप करे'
मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं, मंदिर हो यह मधुशाला।।१९।

बजी न मंदिर में घड़ियाली, चढ़ी न प्रतिमा पर माला,
बैठा अपने भवन मुअज्ज़िन देकर मस्जिद में ताला,
लुटे ख़जाने नरपितयों के गिरीं गढ़ों की दीवारें,
रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला।।२०।

मयकश आज़मी

बंद होंठों में छुपा लो
ये हँसी के फूल
वर्ना रो पड़ोगे।

हैं हवा के पास
अनगिन आरियाँ
कटखने तूफान की
तैयारियाँ
कर न देना आँधियों को
रोकने की भूल
वर्ना रो पड़ोगे।

हर नदी पर
अब प्रलय के खेल हैं
हर लहर के ढंग भी
बेमेल हैं
फेंक मत देना नदी पर
निज व्यथा की धूल
वर्ना रो पड़ोगे।

बंद होंठों में छुपा लो
ये हँसी के फूल
वर्ना रो पड़ोगे।

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मैं नानक का पैगाम कबिरा कि वानी
मैं उर्दू हूँ खुसरो कि शीरीं बयानी |
सदा मस्जिदों में है सर को झुकाया
शिवालो में जाकर तिलक भी लगाया
पीया है अकीदत से गंगा का पानी


मैं जंगो में टीपू कि तलवार भी हूँ
भगतसिंह बिस्मिल कि ललकार भी हूँ
मैं हजरतमहल हूँ मैं झाँसी कि रानी
मैं उर्दू हूँ खुसरो कि शीरीं बयानी |
मैं होली के रंगीन त्योहार में हूँ
दशहरा दिवाली के श्रृगार में हूँ
है मयकश मेरा रूप हिन्दोस्तानी
मैं उर्दू हूँ खुसरो कि शीरीं बयानी |
..............................
.................मयकश आज़मी

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दुनिया को बदल डालो मजदूर किसानो तुम
सारे युग का चक्र तुम्ही हो और जमानो तुम |

राजमहल कि ऊँची ऊँची सब मीनारे तुमसे है
दिल्ली कि लोकसभा है तुमसे सब सरकारे तुमसे है
यू एन ओं और ह्वाईट हाउस कि दीवारे तुम से है
सारे जग के निर्माता हो ए मानो ना मानो तुम
दुनिया को बदल डालो मजदूर किसानो तुम
अब तक वियतनाम कि आँखे खून के आंसू रोती है
ईराक कि माये रोज ही अपने लख्ते जिगर को खोती है |

जापान कि नस्ले अब तक एटमबम कि पीड़ा ढोती है
दुनिया के असली आतकवादी को पहचानो तुम
दुनिया को बदल डालो मजदूर किसानो तुम
..............................
.................................मयकश आज़मी

मंगलवार, 14 जून 2011

कौन थे

एक मशहूर शायर जब अपने मेहमान को दरवाजे तक छोड़ने आया तो मेहमान ने बोला अँधेरा हो गया है...आप क्यों तकलीफ करते है....तब उस शायर ने जवाब दिया---मै तकलीफ वज्लिफ नहीं कर रहा हूँ..मै तो ये देखने यहाँ तक आया की कही आप मेरी चप्पल तो पहन कर नहीं जा रहे है.
हसने के बाद बताइए वो मशहूर शायर कौन थे...............??

hindutva

जूस का ठेला लगाने और श्मशान भूमि के चौकीदार की नौकरी से शुरु करने वाले, मनसे के विधायक रमेश वांझले का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया है। उल्लेखनीय है कि रमेश वांझले ने महाराष्ट्र विधानसभा में "भारत माता को डायन कहने वाले" अबू आज़मी का माइक छीनकर उसे थप्पड़ मारा था। अपने हर भाषण की शुरुआत "मैं दिखता हूं विलेन जैसा, लेकिन काम करता हूं ही
रो जैसा…" से करने वाले रमेश एक दिलदार, मेहनती और हिम्मत वाले इंसान थे। जब सभी पार्टियों ने उन्हें टिकिट देने से मना कर दिया था, तब राज ठाकरे ने रमेश की लोकप्रियता को पहचाना और वह खड़कवासला सीट से भारी बहुमत से जीते…। विधायक बनने से पहले जूस के ठेले की कमाई से उन्होंने कई गरीब दलितों को काशी की यात्रा करवाई… शरीर पर 800 ग्राम सोने के कड़े और मोटी चेन पहनना उनका शगल भी था और पहचान भी…। उन्हें उम्मीद थी कि हिन्दुत्व की राह से भटके राज ठाकरे और बाल ठाकरे फ़िर साथ आएंगे और हिन्दुत्व को मजबूत करेंगे… लेकिन उनका यह स्वप्न अधूरा ही रहा।

दुष्यन्त ki kavita

अक्षरों के इस निविड़ वन में भटकतीं
ये हजारों लेखनी इतिहास का पथ खोजती हैं
...क्रान्ति !...कितना हँसो चाहे
किन्तु ये जन सभी पागल नहीं।
रास्तों पर खड़े हैं पीड़ा भरी अनुगूँज सुनते
शीश धुनते विफलता की चीख़ पर जो कान
स्वर-लय खोजते हैं
ये सभी आदेश-बाधित नहीं।
इस विफल वातावरण में
जो कि लगता है कहीं पर कुछ महक-सी है
भावना हो...सवेरा हो...
या प्रतीक्षित पक्षियों के गान-
किन्तु कुछ है;
गन्ध-वासित वेणियों का इन्तज़ार नहीं।
यह प्रतीक्षा : यह विफलता : यह परिस्थिति :
हो न इसका कहीं भी उल्लेख चाहे
खाद-सी इतिहास में बस काम आये
पर समय को अर्थ देती जा रही है।
दुष्यन्त

वन्देमातरम


अंगारों पर भी पंथी का बढ जाना छुट नहीं सकता!
मिट जाना है स्वीकार मगर
मुस्कराना छुट नहीं सकता!!
लहरों कि क्रूर थपेड़ों में, मांझी ने नाव बढ़ा दी हो,
प्रत्यक्ष मृत्यु कि छाती पर, हँसकर पतवार उठा ली हो,
जब होड़ लगी हो
प्राणों की, पग-पग पर हो विध्वंस खड़ा !
गल-गल मरना स्वीकार मगर, इठलाना छुट नहीं सकता !
मिट जाना है स्वीकार मगर मुस्कराना छुट नहीं सकता !!उन्मत्त किसी
का स्नेह क्रूर, झंझा के व्रज निपतों में,
बिखरा देता निज प्राण-पुन्ज, निर्जन
पथ के आघातों में,
पंथी के पथ का संबल बन, जाता राख बना अपनी !उस दीपक का
पल-पल तिल-तिल, जल जाना छुट नहीं सकता !
मिट जाना है स्वीकार मगर मुस्कराना छुट नहीं सकता !!
जब जन्म मृत्यु उत्थान पतन, जय का हारों का गठबंधन,संध्या
के साथ बिखर जाता, उषा का रंग भरा यौवन ,
फिर भी कलिका निज सौरभ से जग में
चैतन्य भरा करती !
फूलों का परहित खिल-खिल कर मुस्काना छुट नहीं सकता !
मिट
जाना है स्वीकार मगर मुस्कराना छुट नहीं सकता !!
कर्त्तव्य ज्ञान ने मानव
में, पशु में दीवार बना दी है,
सौ बार आन पर मानव ने, प्राणों की भेट चढ़ा दी है,
उठ जाये पी फिर रुकना क्या, हिल जाये हिमालय की छाती !
पर ध्येय बिंदु बन
मानव का चढ़ जाना छुट नहीं सकता !
मिट जाना है स्वीकार मगर मुस्कराना छुट नहीं सकता !!
वन्देमातरम

रविवार, 12 जून 2011

एहसान फरामोश आम आदमी



बेशर्म आम आदमी,
हर समय शिकायत करता है,
सरकार ने यह नहीं किया,
सरकार ने वह नहीं किया,
बेबकूफ यह भी नहीं जानता,
सरकार आम आदमी से बनती है,
आम आदमी से चलती नहीं,
सरकार बनाने की कीमत दी थी तुझे,
दारू, मुर्गा, कम्बल और ढेर आश्वासन,
साला सब भूल गया,
एहसान फरामोश कहीं का,
कितनी दरियादिल है सरकार,
हर पांच साल बाद आती है,
और बांटती है दारू, मुर्गा, कम्बल,
पुराने और नए-नए आश्वासन,
पर बेशर्म आम आदमी,
करता रहता है हर समय शिकायत. 

जज्बात






अपने जज्बात को,
नाहक ही सजा देती हूँ...
होते ही शाम,
चरागों को बुझा देती हूँ...



जब राहत का,
मिलता ना बहाना कोई...

लिखती हूँ हथेली पे नाम तेरा,
लिख के मिटा देती हूँ......................

OSHO


इस जीवन में मैंने दुख ही दुख क्यों पाया है?


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दुख ही दुख अगर पाया है तो बड़ी मेहनत की होगी पाने के लिएबड़ा श्रम किया होगाबड़ी साधना की होगीतपश्र्चर्या की होगी! अगर दुख ही दुख पाया है तो बड़ी कुशलता अर्जित की होगी! दुख कुछ ऐसे नहीं मिलतामुफ्त नहीं मिलता। दुख के लिए कीमत चुकानी पड़ती है। 
आनंद तो यूं ही मिलता हैमुफ्त मिलता हैक्योंकि आनंद स्वभाव है। दुख अर्जित करना पड़ता है। और दुख अर्जित करने का पहला नियम क्या हैसुख मांगो और दुख मिलेगा। सफलता मांगो,विफलता मिलेगी। सम्मान मांगोअपमान मिलेगा। तुम जो मांगोगे उससे विपरीत मिलेगा। तुम जो चाहोगे उससे विपरीत घटित होगा। क्योंकि यह संसार तुम्हारी चाह के अनुसार नहीं चलता। यह चलता है उस परमात्मा की मर्जी से।
अपनी मर्जी को हटाओ! अपने को हटाओ! उसकी मर्जी पूरी होने दो। फिर दुख भी अगर हो तो दुख मालूम नहीं होगा। जिसने सब कुछ उस पर छोड़ दियाअगर दुख भी हो तो वह समझेगा कि जरूर उसके इरादे नेक होंगे। उसके इरादे बद तो हो ही नहीं सकते। जरूर इसके पीछे भी कोई राज होगा। अगर वह कांटा चुभाता है तो जगाने के लिए चुभाता होगा। और अगर रास्तों पर पत्थर डाल रखे हैं उसने तो सीढ़ियां बनाने के लिए डाल रखे होंगे। और अगर मुझे बेचैनी देता हैपरेशानी देता हैतो जरूर मेरे भीतर कोई सोई हुई अभीप्सा को प्रज्वलित कर रहा होगामेरे भीतर कोई आग जलाने की चेष्टा कर रहा होगा।
जिसने सब परमात्मा पर छोड़ाउसके लिए दुख भी सुख हो जाते हैं। और जिसने सब अपने हाथ में रखाउसके लिए सुख भी दुख हो जाते हैं।
जिसे तुम जीवन समझ रहे होवह जीवन नहीं हैटुकड़े-टुकड़े मौत है। जन्म के बाद तुमने मरने के सिवाय और किया ही क्या हैरोज-रोज मर रहे हो। और जिम्मेवार कौन हैअस्तित्व ने जीवन दिया हैमृत्यु हमारा आविष्कार है। अस्तित्व ने आनंद दिया हैदुख हमारी खोज है।
प्रत्येक बच्चा आनंद लेकर पैदा होता हैऔर बहुत कम बूढ़े हैं जो आनंद लेकर विदा होते हैं। जो विदा होते हैं उन्हीं को हम बुद्ध कहते हैं। सभी यहां आनंद लेकर जन्मते हैंआश्र्चर्यविमुग्ध आंखें लेकर जन्मते हैंआह्लाद से भरा हुआ हृदय लेकर जन्मते हैं। हर बच्चे की आंख में झांक कर देखोनहीं दीखती तुम्हें निर्मल गहराईऔर हर बच्चे के चेहरे पर देखोनहीं दीखता तुम्हें आनंद का आलोक?और फिर क्या हो जाता हैक्या हो जाता हैफूल की तरह जो जन्मते हैंवे कांटे क्यों हो जाते हैं? 
जरूर कहीं हमारे जीवन की पूरी शिक्षण की व्यवस्था भ्रांत है। हमारा पूरा संस्कार गलत है। हमारा पूरा समाज रुग्ण है। हमें गलत सिखाया जा रहा है। हमें सुख पाने के लिए दौड़ सिखाई जा रही है। दौड़ो! ज्यादा धन होगा तो ज्यादा सुख होगा। ज्यादा बड़ा पद होगा तो ज्यादा सुख होगा।
गलत हैं ये बातें। न धन से सुख होता हैन पद से सुख होता है। और मैं यह नहीं कह रहा हूं कि धन छोड़ दो या पद छोड़ दो। मैं इतना ही कह रहा हूंइनसे सुख का कोई नाता नहीं। सुख तो होता है भीतर डुबकी मारने से। हांअगर भीतर डुबकी मारे हुए आदमी के हाथ में धन हो तो धन भी सुख देता है। अगर भीतर डुबकी मारे हुए आदमी के हाथ में दुख हो तो दुख भी सुख बन जाता है। जिसने भीतर डुबकी मारीउसके हाथ में जादू आ गयाजादू की छड़ी आ गई। वह भीड़ में रहेतो अकेला। वह शोरगुल में रहेतो संगीत में। वह जल में चलता हैलेकिन जल में उसके पैर नहीं भीगते।
यह मैं नहीं कह सकता कि ये दुख अगर मिल रहे हैं तो पिछले जन्मों के हैं। पिछले जन्मों के दुख पिछले जन्मों में मिल गए होंगे। परमात्मा उधारी में भरोसा नहीं करता। अभी आग में हाथ डालोगे,अभी जलेगाअगले जन्म में नहीं। और अभी किसी को दुख दोगे तो अभी दुख पाओगेअगले जन्म में नहीं। यह अगले जन्म की तरकीब बड़ी चालबाज ईजाद हैबड़ा षड्यंत्र हैबड़ा धोखा है।
अगर अभी प्रेम करोगे तो अभी सुख बरसेगा और अभी क्रोध करोगे तो अभी दुख बरसेगा। सच तो यह हैक्रोध करने के पहले ही आदमी क्रोध से भस्मीभूत हो जाता है। दूसरे को जलाओउसके पहले खुद जलना पड़ता है। दूसरे को दुख दोउसके पहले खुद को दुख देना पड़ता है।
ये पिछले जन्मों के दुख नहीं हैं। अभी जो कर रहे होउसी का परिणाम है। पहले तो मेरी बात सुन कर चोट लगेगीक्योंकि सांत्वना नहीं मिलेगी। लेकिन अगर मेरी बात समझे तो छुटकारे का उपाय भी है। तो खुशी भी होगी। अगर इसी जन्म की बात है तो कुछ किया जा सकता है। यही मैं कह रहा हूं कि अभी कुछ किया जा सकता है।
सुख छोड़ो! सुख की आकांक्षा छोड़ो! सुख की आकांक्षा का अर्थ है-बाहर से कुछ मिलेगातो सुख। बाहर से कभी सुख नहीं मिलता। सुख की सारी आकांक्षा को ध्यान की आकांक्षा में रूपांतरित करो। सुख नहीं चाहिएआनंद चाहिए। और आनंद भीतर है।
तो भीतर जितना समय मिल जाएउतना भीतर डुबकी मारो। जब मिल जाएदिन-रातकाम-धाम से बच करजब सुविधा मिल जाएपति दफ्तर चले जाएंबच्चे स्कूल चले जाएंतो घड़ी दो घड़ी के लिए द्वार-दरवाजे बंद करके-घर के ही नहींइंद्रियों के भी द्वार-दरवाजे बंद करके-भीतर डूब जाओ। और धीरे-धीरे सुख के फूल खिलने शुरू हो जाएंगे-महासुख के! और वे ऐसे फूल हैं जो खिलते हैं तो फिर मुर्झाते नहीं हैं।
सौजन्‍य से - ओशो न्‍यूज लेटर

प्रेम स्वतंत्रता की कीमत पर नहीं !




"चूंकि मैं अपनी स्वतंत्रता चाहता हूंअपनी प्रेयसी को हर संभव स्वतंत्रता देता हूं। लेकिन मैं पाता हूं कि पहले उसका ध्यान रखने का नतीजा यह होता है कि अंततः मैं स्वयं को ही चोट पहुंचाता हूं।'

अपनी प्रेयसी को स्वतंत्रता देने का तुम्हारा विचार ही गलत है। अपनी प्रेयसी को स्वतंत्रता देने वाले तुम कौन होते होतुम प्रेम कर सकते होऔर तुम्हारे प्रेम में स्वतंत्रता निहित है। यह ऐसी चीज नहीं है जो किसी को दी जा सके। यदि इसे दिया जाता है तो वही समस्याएं आएंगी जिसका तुम सामना करते हो।
सबसे पहले तुम कुछ गलत करते हो। वास्तव में तुम स्वतंत्रता देना नहीं चाहते होतुम चाहोगे कि कोई ऐसी परिस्थिति उत्पन्न न होजिसमें तुम्हें स्वतंत्रता देनी पड़े। लेकिन तुमने कई बार मुझे यह कहते हुए सुना होगा कि प्रेम स्वतंत्रता देता हैइसलिए बिना सचेत हुए स्वतंत्रता देने के लिए स्वयं पर दबाव डालते होक्योंकि अन्यथा तुम्हारा प्रेमप्रेम नहीं रह जाता।
तुम एक कठिन समस्या में घिरे हो: यदि तुम स्वतंत्रता नहीं देते हो तो तुम अपने प्रेम पर संदेह करने लगते होयदि तुम स्वतंत्रता देते होजो कि तुम दे नहीं सकते...अहंकार बहुत ही ईर्ष्यालु होता है। इससे हजारों प्रश्न खड़े होंगे। "क्या तुम अपनी प्रेमिका के लिए काफी नहीं हो कि वह किसी और का साथ पाने के लिए तुमसे स्वतंत्रता चाहती हैइससे चोट पहुंचती है और तुम सोचने लगते हो कि तुम अपनेको किसी से कम महत्व देते हो।'
उसे स्वतंत्रता देकर तुमने किसी अन्य को पहले रखा और स्वयं को बाद में। यह अहम्‌ के विरुद्ध है और इससे कोई लाभ भी नहीं मिलने वाला है क्योंकि तुमने जो स्वतंत्रता दी है उसके लिए तुम बदला लोगे। तुम चाहोगे कि ऐसी ही स्वतंत्रता तुम्हें मिलेचाहे तुम्हें उसकी आवश्यकता है या नहींबात यह नहीं है-ऐसा केवल यह सिद्ध करने के लिए किया जाता है कि तुम ठगे तो नहीं जा रहे हो।
दूसरी बातयदि तुम्हारी प्रेमिका किसी अन्य के साथ रही है तो तुम अपनी प्रेमिका के साथ रहने पर अजीब सा महसूस करोगे। यह तुम्हारे और उसके बीच बाधा बनकर खड़ा हो जाएगा। उसने किसी और को चुन लिया है और तुम्हारा त्याग कर दिया हैउसने तुम्हारा अपमान किया है।
और तुमने उसे इतना कुछ दिया हैतुम इतने उदार रहे होतुमने उसे स्वतंत्रता दी है। चूंकि तुम आहत महसूस कर रहे हो इसलिए तुम किसी न किसी रूप में उसे चोट पहुंचाओगे।
लेकिन यह सब कुछ गलतफहमी के कारण पैदा होता है। मैंने यह नहीं कहा है कि तुम प्रेम करते हो तो तुम्हें स्वतंत्रता देनी होगी। नहीं,मैंने कहा है कि प्रेम स्वतंत्रता है। यह देने का प्रश्न नहीं है। यदि तुम्हें यह देना पड़ता है तो इसे न देना बेहतर है। जो जैसा है उसे वैसे रहने दो। बिना कारण जटिलता क्यों उत्पन्न की जाएपहले से ही बहुत समस्याएं हैं।
यदि तुम्हारे प्रेम में वह स्तर आ गया है कि स्वतंत्रता उसका अंग बन गया हैतब तुम्हारी प्रेमिका को अनुमति लेने की आवश्यकता ही नहीं रह जाएगी। वास्तव मेंयदि मैं तुम्हारी जगह होता और मेरी प्रेमिका यदि अनुमति मांगती तो मुझे चोट पहुंचती। इसका अर्थ यह कि उसे मेरे प्रेम पर भरोसा नहीं। मेरा प्रेम स्वतंत्रता है। मैंने उससे प्रेम किया है इसका अर्थ यह नहीं है कि मुझे सारे दरवाजे और खिड़कियां बंद कर देना चाहिए ताकि वह किसी के साथ हंस न सकेकिसी के साथ नृत्य न कर सकेकिसी से प्रेम न कर सके-क्योंकि हम कौन होते हैं?
यही मूल प्रश्न है जिसे सभी को करना चाहिए: हम कौन हैंहम सभी अजनबी हैंऔर इस आधार पर क्या हम इतने दबंग हो सकते हैं कि हम कह सकते हैं, "मैं तुम्हें स्वतंत्रता दूंगा', अथवा "मैं तुम्हें स्वतंत्रता नहीं दूंगा', "यदि तुम मुझसे प्रेम करती हो तो किसी अन्य से प्रेम नहीं कर सकती?' ये सभी मूर्खतापूर्ण मान्यताएं हैं लेकिन ये सभी मानव पर शुरू से हावी रहे हैं। और हम अभी भी असभ्य हैंहम अभी भी नहीं जानते कि प्रेम क्या होता है।
यदि मैं किसी से प्रेम करता हूं तो मैं उस व्यक्ति के प्रति कृतज्ञ होता हूं कि उसने मुझे प्रेम करने दियाउसने मेरे प्रेम को अस्वीकार नहीं किया। यह पर्याप्त है। मैं उसके लिए एक कैदखाना नहीं बन जाता। उसने मुझसे प्रेम किया और इसके बदले मैं उसके चारों ओर एक कैदखाना बना रहा हूंमैंने उससे प्रेम कियाऔर इसके बदले वह मेरे चारों ओर एक कैदखाना बना रही हैहम एक दूसरे को अच्छा पुरस्कार दे रहें हैं!
यदि मैं किसी से प्रेम करता हूं तो मैं उसका कृतज्ञ होता हूं और उसकी स्वतंत्रता बनी रहती है। मैंने उसे स्वतंत्रता दी नहीं है। यह उसका जन्मसिद्ध अधिकार है और मेरा प्रेम उससे उसका यह अधिकार नहीं छीन सकता। कैसे प्रेम किसी व्यक्ति से उसकी स्वतंत्रता छीन सकता हैखासकर उस व्यक्ति से जिससे तुम प्रेम करते होतुम यह भी नहीं कह सकते कि "मैं उसे स्वतंत्रता देता हूं।सबसे पहले तुम कौनहोते होकेवल एक अजनवी। तुम दोनों सड़क पर मिले होसंयोग सेऔर वह महान है कि उसने तुम्हारे प्रेम को स्वीकार किया। उसके प्रति कृतज्ञ रहो और जिस तरह से जीना चाहती है उसे उस तरह से जीने दोऔर तुम जिस तरह से जीना चाहते हो उस तरह से जीवनजीओ। तुम्हारी जीवन-शैली में कोई हस्तक्षेप नहीं करे। इसे ही स्वतंत्रता कहते हैं। तब प्रेम तुम्हें कम तनावपूर्णकम चिंताग्रस्त होनेकम क्रुद्ध और अधिक प्रेसन्न होने में सहायक होगा।
दुनिया में ठीक इसका उलटा हो रहा है। प्रेम काफी दुख-दर्द देता है और ऐसे भी लोग हैं जो अंततः निर्णय ले लेते हैं कि किसी से प्रेम न करना बेहतर है। वे अपने हृदय के द्वार को बंद कर देते हैं क्योंकि यह केवल नरक रह जाता और कुछ भी नहीं।
लेकिन प्रेम के लिए द्वार बंद करने का अर्थ है वास्तविकता के लिए द्वार बंद करनाअस्तित्व के लिए द्वार बंद करनाइसलिए मैं इसकासमर्थन नहीं करूंगा। मैं कहूंगा कि प्रेम के संपूर्ण स्वरूप को बदल दो! तुमने प्रेम को बड़ी विचित्र परिस्थिति में धकेल दिया-इस परिस्थिति को बदलो।
प्रेम को अपनी आध्यात्मिक उन्नति में सहायक बनने दो। प्रेम को अपने हृदय और साहस का पोषण बनने दो ताकि तुम्हारा हृदय किसी व्यक्ति के प्रति ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व के प्रति खुल सके। 

OSHO


सिर्फ सेक्स तल पर मिलना आत्मीयता नहीं!




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सभी आत्मीयता से डरते हैं। यह बात और है कि इसके बारे में तुम सचेत हो या नहीं। आत्मीयता का मतलब होता है कि किसी अजनबी के सामने स्वयं को पूरी तरह से उघाड़ना। हम सभी अजनबी हैं--कोई भी किसी को नहीं जानता। हम स्वयं के प्रति भी अजनबी हैंक्योंकि हम नहीं जानते कि हम हैं कौन। 
आत्मीयता तुम्हें अजनबी के करीब लाती है। तुम्हें अपने सारे सुरक्षा कवच गिराने हैंसिर्फ तभी,आत्मीयता संभव है। और भय यह है कि यदि तुम अपने सारे सुरक्षा कवचतुम्हारे सारे मुखौटे गिरा देते होतो कौन जाने कोई अजनबी तुम्हारे साथ क्या करने वाला है।
एक तरफ आत्मीयता अनिवार्य जरूरत हैइसलिए सभी यह चाहते हैं। लेकिन हर कोई चाहता है कि दूसरा व्यक्ति आत्मीय हो कि दूसरा व्यक्ति अपने बचाव गिरा देसंवेदनशील हो जाएअपने सारे घाव खोल देसारे मुखौटे और झूठा व्यक्तित्व गिरा देजैसा वह है वैसा नग्न खड़ा हो जाए। 
यदि तुम सामान्य जीवन जीतेप्राकृतिक जीवन जीते तो आत्मीयता से कोई भय नहीं होताबल्कि बहुत आनंद होता-दो ज्योतियां इतनी पास आती हैं कि लगभग एक बन जाए। और यह मिलन बहुत बड़ी तृप्तिदायीसंतुष्टिदायीसंपूर्ण होती है। लेकिन इसके पहले कि तुम आत्मीयता पाओतुम्हें अपना घर पूरी तरह से साफ करना होगा। 
सिर्फ ध्यानी व्यक्ति ही आत्मीयता को घटने दे सकता है। आत्मीयता का सामान्य सा अर्थ यही होता है कि तुम्हारे लिए हृदय के सारे द्वार खुल गएतुम्हारा भीतर स्वागत है और तुम मेहमान बन सकते हो। लेकिन यह तभी संभव है जब तुम्हारे पास हृदय हो और जो दमित कामुकता के कारण सिकुड़ नहीं गया होजो हर तरह के विकारों से उबल नहीं रहा होजो कि प्राकृतिक हैजैसे कि वृक्षजो इतना निर्दोष है जितना कि एक बच्चा। तब आत्मीयता का कोई भय नहीं होगा। 
विश्रांत होओ और समाज ने तुम्हारे भीतर जो विभाजन पैदा कर दिया है उसे समाप्त कर दो। वही कहो जो तुम कहना चाहते हो। बिना फल की चिंता किए अपनी सहजता के द्वारा कर्म करो। यह छोटा सा जीवन है और इसे यहां और वहां के फलों की चिंता करके नष्ट नहीं किया जाना चाहिए। 
आत्मीयता के द्वाराप्रेम के द्वारादूसरें लोगों के प्रति खुल करतुम समृद्ध होते हो। और यदि तुम बहुत सारे लोगों के साथ गहन प्रेम मेंगहन मित्रता मेंगहन आत्मीयता में जी सको तो तुमने जीवन सही ढंग से जीयाऔर जहां कहीं तुम हो...तुमने कला सीख लीतुम वहां भी प्रसन्नतापूर्वक जीओगे।
लेकिन इसके पहले कि तुम आत्मीयता के प्रति भयरहित होओतुम्हें सारे कचरे से मुक्त होना होगा जो धर्म तुम्हारे ऊपर डालते रहे हैंसारा कबाड़ जो सदियों से तुम्हें दिया जाता रहा है। इस सब से मुक्त होओऔर शांतिमौनआनंदगीत और नृत्य का जीवन जीओ। और तुम रूपांतरित होओगे...जहां कहीं तुम होवह स्थान स्वर्ग हो जाएगा। 
अपने प्रेम को उत्सवपूर्ण बनाओइसे भागते दौडते किया हुआ कृत्य मत बनाओ। नाचोगाओसंगीत बजाओ-और सेक्स को मानसिक मत होने दो। मानसिक सेक्स प्रामाणिक नहीं होता हैसेक्स सहज होना चाहिए।
माहौल बनाओ। तुम्हारा सोने का कमरा ऐसा होना चाहिए जैसे कि मंदिर हो। अपने सोने के कमरे में और कुछ मत करोगाओ और नाचो और खेलोऔर यदि स्वतः प्रेम होता हैसहज घटना की तरह,तो तुम अत्यधिक आश्चर्यचकित होओगे कि जीवन ने तुम्हें ध्यान की झलक दे दी।
पुरुष और स्त्री के बीच रिश्ते में बहुत बड़ी क्रांति आने वाली है। पूरी दुनिया में विकसित देशों में ऐसे संस्थान हैं जो सिखाते हैं कि प्रेम कैसे करना। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जानवर भी जानते हैं कि प्रेम कैसे करनाऔर आदमी को सीखना पड़ता है। और उनके सिखाने में बुनियादी बात है संभोग के पहले की क्रीडा और उसके बाद की क्रीडाफोरप्ले और ऑफ्टरप्ले। तब प्रेम पावन अनुभव हो जाता है।
इसमें क्या बुरा है यदि आदमी उत्तेजित हो जाए और कमरे से बाहर नंगा निकाल आएदरवाजे को बंद रखो! सारे पड़ोसियों को जान लेने दो कि यह आदमी पागल है। लेकिन तुम्हें अपने चरमोत्कर्ष के अनुभव की संभावना को नियंत्रित नहीं करना है। चरमोत्कर्ष का अनुभव मिलने और मिटने का अनुभव हैअहंकारविहीनतामनविहीनतासमयविहीनता का अनुभव है।
इसी कारण लोग कंपते हुए जीते हैं। भला वो छिपाएंवे इसे ढंक लेंवे किसी को नहीं बताएंलेकिन वे भय में जीते हैं। यही कारण है कि लोग किसी के साथ आत्मीय होने से डरते हैं। भय यह है कि हो सकता है कि यदि तुमने किसी को बहुत करीब आने दिया तो दूसरा तुम्हारे भीतर के काले धब्बे देख ना ले ।
इंटीमेसी (आत्मीयता) शब्द लातीन मूल के इंटीमम से आया है। इंटीमम का अर्थ होता है तुम्हारी अंतरंगतातुम्हारा अंतरतम केंद्र। जब तक कि वहां कुछ न होतुम किसी के साथ आत्मीय नहीं हो सकते। तुम किसी को आत्मीय नहीं होने देते क्योंकि वह सब-कुछ देख लेगाघाव और बाहर बहता हुआ पस। वह यह जान लेगा कि तुम यह नहीं जानते कि तुम हो कौनकि तुम पागल आदमी हाकि तुम नहीं जानते कि तुम कहां जा रहे हो कि तुमने अपना स्वयं का गीत ही नहीं सुना कि तुम्हारा जीवन अव्यवस्थित हैयह आनंद नहीं है। इसी कारण आत्मीयता का भय है। प्रेमी भी शायद ही कभी आत्मीय होते हैं। और सिर्फ सेक्स के तल पर किसी से मिलना आत्मीयता नहीं है। ऐंद्रिय चरमोत्कर्ष आत्मीयता नहीं है। यह तो इसकी सिर्फ परिधि हैआत्मीयता इसके साथ भी हो सकती है और इसके बगैर भी हो सकती है।
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(सौजन्‍य से ओशो इंटरनेश्‍नल फाउंडेशन)
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बच्चों को अंतर्मुखी कैसे बनाया जाए?



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गतांक से आगे---
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इसलिए भूल कर भी दबाव मत डालनाभूल कर भी जबरदस्ती मत करनाभूल कर भी हिंसा मत करना। बहुत प्रेम सेअपने जीवन के परिवर्तन सेबहुत शांति सेबहुत सरलता से बच्चे को सुझाना। आदेश मत देनायह मत कहना कि ऐसा करो। क्योंकि जब भी कोई ऐसा कहता हैऐसा करो! तभी भीतर यह ध्वनि पैदा होती है सुनने वाले के कि नहीं करेंगे। यह बिलकुल सहज है। उससे यह मत कहना कि ऐसा करो। उससे यही कहना कि मैंने ऐसा किया और आनंद पायाअगर तुम्हें आनंद पाना हो तो इस दिशा में सोचना। उसे समझानाउसे सुझाव देनाआदेश नहींउपदेश नहीं। उपदेश और आदेश बड़े खतरनाक सिद्ध होते हैं। उपदेश और आदेश बड़े अपमानजनक सिद्ध होते हैं।
छोटे बच्चे का बहुत आदर करना। क्योंकि जिसका हम आदर करते हैं उसको ही केवल हम अपने हृदय के निकट ला पाते हैं। यह हैरानी की बात मालूम पड़ेगी। हम तो चाहते हैं कि छोटे बच्चे बड़ों का आदर करें। हम उनका कैसे आदर करें! लेकिन अगर हम चाहते हैं कि छोटे बच्चे आदर करें मां-बाप कातो आदर देना पड़ेगा। यह असंभव है कि मां-बाप अनादर दें और बच्चों से आदर पा लेंयह असंभव है। बच्चों को आदर देना जरूरी है और बहुत आदर देना जरूरी है। उगते हुए अंकुर हैंउगता हुआ सूरज हैं। हम तो व्यर्थ हो गएहम तो चुक गए। अभी उसमें जीवन का विकास होने को है। वह परमात्मा ने एक नये व्यक्तित्व को भेजा हैवह उभर रहा है। उसके प्रति बहुत सम्मानबहुत आदर जरूरी है। आदरपूर्वकप्रेमपूर्वकखुद के व्यक्तित्व के परिवर्तन के द्वारा उस बच्चे के जीवन को भी परिवर्तित किया जा सकता है।
अंतर्मुखी बनाने के लिए पूछा है। अंतर्मुखी तभी कोई बन सकता है जब भीतर आनंद की ध्वनि गूंजने लगे। हमारा चित्त वहीं चला जाता है जहां आनंद होता है। अभी मैं यहां बोल रहा हूं। अगर कोई वहां एक वीणा बजाने लगे और गीत गाने लगेतो फिर आपको अपने मन को वहां ले जाना थोड़े ही पड़ेगा,वह चला जाएगा। आप अचानक पाएंगे कि आपका मन मुझे नहीं सुन रहा हैवह वीणा सुनने लगा। मन तो वहां जाता है जहां सुख हैजहां संगीत हैजहां रस है।
बच्चे बहिर्मुखी इसलिए हो जाते हैं कि वे मां-बाप को देखते हैं दौड़ते हुए बाहर की तरफ। एक मां को वे देखते हैं बहुत अच्छे कपड़ों की तरफ दौड़ते हुएदेखते हैं गहनों की तरफ दौड़ते हुएदेखते हैं बड़े मकान की तरफ दौड़ते हुएदेखते हैं बाहर की तरफ दौड़ते हुए। उन बच्चों का भी जीवन बहिर्मुखी हो जाता है।
अगर वे देखें एक मां को आंख बंद किए हुएऔर उसके चेहरे पर आनंद झरते हुए देखेंऔर वे देखें एक मां को प्रेम से भरे हुएऔर वे देखें एक मां को छोटे मकान में भी प्रफुल्लित और आनंदितऔर वे कभी-कभी देखें कि मां आंख बंद कर लेती है और किसी आनंद के लोक में चली जाती है। वे पूछेंगे कि यह क्या हैकहां चली जाती होवे अगर मां को ध्यान में और प्रार्थना में देखेंवे अगर किसी गहरी तल्लीनता में उसे डूबा हुआ देखेंवे अगर उसे बहुत गहरे प्रेम में देखेंतो वे जानना चाहेंगे कि कहां जाती होयह खुशी कहां से आती हैयह आंखों में शांति कहां से आती हैयह प्रफुल्लता चेहरे पर कहां से आती हैयह सौंदर्ययह जीवन कहां से आ रहा है? 
वे पूछेंगेवे जानना चाहेंगे। और वही जाननावही पूछनावही जिज्ञासाफिर उन्हें मार्ग दिया जा सकता है।
तो पहली तो जरूरत है कि अंतर्मुखी होना खुद सीखें। अंतर्मुखी होने का अर्थ है: घड़ी दो घड़ी को चौबीस घंटे के जीवन में सब भांति चुप हो जाएंमौन हो जाएं। भीतर से आनंद को उठने देंभीतर से शांति को उठने दें। सब तरह से मौन और शांत होकर घड़ी दो घड़ी को बैठ जाएं।
जो मां-बाप चौबीस घंटे में घंटे दो घंटे को भी मौन होकर नहीं बैठतेउनके बच्चों के जीवन में मौन नहीं हो सकता। जो मां-बाप घंटे दो घंटे को घर में प्रार्थना में लीन नहीं हो जाते हैंध्यान में नहीं चले जाते हैंउनके बच्चे कैसे अंतर्मुखी हो सकेंगे? 
बच्चे देखते हैं मां-बाप को कलह करते हुएद्वंद्व करते हुएसंघर्ष करते हुएलड़ते हुएदुर्वचन बोलते हुए। बच्चे देखते हैंमां-बाप के बीच कोई बहुत गहरा प्रेम का संबंध नहीं देखतेकोई शांति नहीं देखते,कोई आनंद नहीं देखतेउदासीऊबघबड़ाहटपरेशानी देखते हैं। ठीक इसी तरह की जीवन की दिशा उनकी हो जाती है।
बच्चों को बदलना हो तो खुद को बदलना जरूरी है। अगर बच्चों से प्रेम हो तो खुद को बदल लेना एकदम जरूरी है। जब तक आपके कोई बच्चा नहीं थातब तक आपकी कोई जिम्मेवारी नहीं थी। बच्चा होने के बाद एक अदभुत जिम्मेवारी आपके ऊपर आ गई। एक पूरा जीवन बनेगा या बिगड़ेगा। और वह आप पर निर्भर हो गया। अब आप जो भी करेंगी उसका परिणाम उस बच्चे पर होगा।
अगर वह बच्चा बिगड़ाअगर वह गलत दिशाओं में गयाअगर दुख और पीड़ा में गयातो उसका पाप किसके ऊपर होगाबच्चे को पैदा करना आसानलेकिन ठीक अर्थों में मां बनना बहुत कठिन है। बच्चे को पैदा करना तो बहुत आसान है। पशु-पक्षी भी करते हैंमनुष्य भी करते हैंभीड़ बढ़ती जाती है दुनिया में। लेकिन इस भीड़ से कोई हल नहीं है। मां होना बहुत कठिन है।
अगर दुनिया में कुछ स्त्रियां भी मां हो सकें तो सारी दुनिया दूसरी हो सकती है। मां होने का अर्थ है: इस बात का उत्तरदायित्व कि जिस जीवन को मैंने जन्म दिया हैअब उस जीवन को ऊंचे से ऊंचे स्तरों तकपरमात्मा तक पहुंचाने की दिशा पर ले जाना मेरा कर्तव्य है। और इस कर्तव्य की छाया में मुझे खुद को बदलना होगा। क्योंकि जो व्यक्ति भी दूसरे को बदलना चाहता हो उसे अपने को बदले बिना कोई रास्ता नहीं है।
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                समाप्‍त :::
            सौजन्‍य से – ओशो न्‍यूज लेटर


बच्चों को अंतर्मुखी कैसे बनाया जाए? 
गतांक से आगे::::
फ़्रायड एक बड़ा मनोवैज्ञानिक हुआ। अपनी पत्नी और अपने बच्चे के साथ एक दिन बगीचे में घूमने गया था। जब सांझ को वापस लौटने लगाअंधेरा घिर गयातो देखा दोनों ने कि बच्चा कहीं नदारद है। फ़्रायड की पत्नी घबड़ाईउसने कहा कि बच्चा तो साथ नहीं हैकहां गयाबड़ा बगीचा था मीलों लंबाअब रात को उसे कहां खोजेंगे? 
फ़्रायड ने क्या कहा? 
उसने कहातुमने उसे कहीं जाने को वर्जित तो नहीं किया थाकहीं जाने को मना तो नहीं किया था? 
उसकी स्त्री ने कहाहांमैंने मना किया थाफव्वारे पर मत जाना! 
तो उसने कहासबसे पहले फव्वारे पर चल कर देख लें। सौ में निन्यानबे मौके तो ये हैं कि वह वहीं मिल जाएएक ही मौका है कि कहीं और हो। 
उसकी पत्नी चुप रही। जाकर देखावह फव्वारे पर पैर लटकाए हुए बैठा हुआ था। उसकी पत्नी ने पूछा कि यह आपने कैसे जाना?
उसने कहायह तो सीधा गणित है। मां-बाप जिन बातों की तरफ जाने से रोकते हैंवे बातें आकर्षक हो जाती हैं। बच्चा उन बातों को जानने के लिए उत्सुकता से भर जाता है कि जाने। जिन बातों की तरफ मां-बाप ले जाना चाहते हैंबच्चे की उत्सुकता समाप्त हो जाती हैउसका अहंकार जग जाता हैवह रुकावट डालता हैवह जाना नहीं चाहता। आप यह बात जान कर हैरान होंगी कि इस तथ्य ने आज तक मनुष्य के समाज को जितना नुकसान पहुंचाया हैकिसी और ने नहीं। क्योंकि मां-बाप अच्छी बातों की तरफ ले जाना चाहते हैं,बच्चे का अहंकार अच्छी बातों के विरोध में हो जाता है। मां-बाप बुरी बातों से रोकते हैंबच्चे की जिज्ञासा बुरी बातों की तरफ बढ़ जाती है। मां-बाप इस भांति अपने ही हाथों अपने बच्चों के शत्रु सिद्ध होते हैं।
इसलिए शायद कभी आपको यह खयाल न आया हो कि बहुत अच्छे घरों में बहुत अच्छे बच्चे पैदा नहीं होते। कभी नहीं होते। बहुत बड़े-बड़े लोगों के बच्चे तो बहुत निकम्मे साबित होते हैं। गांधी जैसे बड़े व्यक्ति का एक लड़का शराब पीयामांस खायाधर्म परिवर्तित किया। आश्चर्यजनक है! क्या हुआ यहगांधी ने बहुत कोशिश की उसको अच्छा बनाने कीवह कोशिश दुश्मन बन गई।
तो एक बात तो यह समझ लें कि जिसको भी परिवर्तित करने का खयाल उठेपहले तो स्वयं का जीवन उस दिशा में परिवर्तित हो जाना चाहिए। तो आपके जीवन की छायाआपके जीवन का प्रभावबहुत अनजान रूप से बच्चे को प्रभावित करता है। आपकी बातें नहीं,आपके उपदेश नहीं। आपके जीवन की छाया बच्चे को परोक्ष रूप से प्रभावित करती है और उसके जीवन में परिवर्तन की बुनियाद बन जाती है।
और दूसरी बातबच्चे को कभी भी दबाव डाल करआग्रह करके किसी अच्छी दिशा में ले जाने की कोशिश मत करना। वही बात अच्छी दिशा में जाने के लिए सबसे बड़ी दीवाल हो जाएगी। और हो भी सकता हैजब तक वह छोटा रहेआपकी बात मान लेक्योंकि कमजोर है और आप ताकतवर हैंआप डरा सकते हैंधमका सकते हैंआप हिंसा कर सकते हैं उसके साथ। और यह मत सोचना कभी कि मां-बाप अपने बच्चों के साथ कैसे हिंसा करेंगे! मां-बाप ने इतनी हिंसा की है बच्चों के साथ जिसका कोई हिसाब नहीं है। दिखाई नहीं पड़ती। जब भी हम किसी को दबाते हैं तब हम हिंसा करते हैं। बच्चे के अहंकार को चोट लगती है। लेकिन वह कमजोर हैसहता है। आज नहीं कल जब वह बड़ा हो जाएगा और ताकत उसके हाथ में आएगीतब तक आप बूढ़े हो जाएंगेतब आप कमजोर हो जाएंगेतब वह बदला लेगा। बूढ़े मां-बाप के साथ बच्चों का जो दुर्व्यवहार है उसका कारण मां-बाप ही हैं। बचपन में उन्होंने बच्चों के साथ जो किया हैबुढ़ापे में बच्चे उनके साथ करेंगे।