मंगलवार, 14 जून 2011

वन्देमातरम


अंगारों पर भी पंथी का बढ जाना छुट नहीं सकता!
मिट जाना है स्वीकार मगर
मुस्कराना छुट नहीं सकता!!
लहरों कि क्रूर थपेड़ों में, मांझी ने नाव बढ़ा दी हो,
प्रत्यक्ष मृत्यु कि छाती पर, हँसकर पतवार उठा ली हो,
जब होड़ लगी हो
प्राणों की, पग-पग पर हो विध्वंस खड़ा !
गल-गल मरना स्वीकार मगर, इठलाना छुट नहीं सकता !
मिट जाना है स्वीकार मगर मुस्कराना छुट नहीं सकता !!उन्मत्त किसी
का स्नेह क्रूर, झंझा के व्रज निपतों में,
बिखरा देता निज प्राण-पुन्ज, निर्जन
पथ के आघातों में,
पंथी के पथ का संबल बन, जाता राख बना अपनी !उस दीपक का
पल-पल तिल-तिल, जल जाना छुट नहीं सकता !
मिट जाना है स्वीकार मगर मुस्कराना छुट नहीं सकता !!
जब जन्म मृत्यु उत्थान पतन, जय का हारों का गठबंधन,संध्या
के साथ बिखर जाता, उषा का रंग भरा यौवन ,
फिर भी कलिका निज सौरभ से जग में
चैतन्य भरा करती !
फूलों का परहित खिल-खिल कर मुस्काना छुट नहीं सकता !
मिट
जाना है स्वीकार मगर मुस्कराना छुट नहीं सकता !!
कर्त्तव्य ज्ञान ने मानव
में, पशु में दीवार बना दी है,
सौ बार आन पर मानव ने, प्राणों की भेट चढ़ा दी है,
उठ जाये पी फिर रुकना क्या, हिल जाये हिमालय की छाती !
पर ध्येय बिंदु बन
मानव का चढ़ जाना छुट नहीं सकता !
मिट जाना है स्वीकार मगर मुस्कराना छुट नहीं सकता !!
वन्देमातरम

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