ritesh tikariha's hindi blog
रविवार, 12 जून 2011
जज्बात
अपने जज्बात को,
नाहक ही सजा देती हूँ...
होते ही शाम,
चरागों को
बुझा
देती हूँ...
जब राहत का,
मिलता ना बहाना कोई...
लिखती हूँ हथेली पे नाम तेरा,
लिख के मिटा देती हूँ......................
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