रविवार, 19 जून 2011

मयकश आज़मी

बंद होंठों में छुपा लो
ये हँसी के फूल
वर्ना रो पड़ोगे।

हैं हवा के पास
अनगिन आरियाँ
कटखने तूफान की
तैयारियाँ
कर न देना आँधियों को
रोकने की भूल
वर्ना रो पड़ोगे।

हर नदी पर
अब प्रलय के खेल हैं
हर लहर के ढंग भी
बेमेल हैं
फेंक मत देना नदी पर
निज व्यथा की धूल
वर्ना रो पड़ोगे।

बंद होंठों में छुपा लो
ये हँसी के फूल
वर्ना रो पड़ोगे।

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मैं नानक का पैगाम कबिरा कि वानी
मैं उर्दू हूँ खुसरो कि शीरीं बयानी |
सदा मस्जिदों में है सर को झुकाया
शिवालो में जाकर तिलक भी लगाया
पीया है अकीदत से गंगा का पानी


मैं जंगो में टीपू कि तलवार भी हूँ
भगतसिंह बिस्मिल कि ललकार भी हूँ
मैं हजरतमहल हूँ मैं झाँसी कि रानी
मैं उर्दू हूँ खुसरो कि शीरीं बयानी |
मैं होली के रंगीन त्योहार में हूँ
दशहरा दिवाली के श्रृगार में हूँ
है मयकश मेरा रूप हिन्दोस्तानी
मैं उर्दू हूँ खुसरो कि शीरीं बयानी |
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.................मयकश आज़मी

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दुनिया को बदल डालो मजदूर किसानो तुम
सारे युग का चक्र तुम्ही हो और जमानो तुम |

राजमहल कि ऊँची ऊँची सब मीनारे तुमसे है
दिल्ली कि लोकसभा है तुमसे सब सरकारे तुमसे है
यू एन ओं और ह्वाईट हाउस कि दीवारे तुम से है
सारे जग के निर्माता हो ए मानो ना मानो तुम
दुनिया को बदल डालो मजदूर किसानो तुम
अब तक वियतनाम कि आँखे खून के आंसू रोती है
ईराक कि माये रोज ही अपने लख्ते जिगर को खोती है |

जापान कि नस्ले अब तक एटमबम कि पीड़ा ढोती है
दुनिया के असली आतकवादी को पहचानो तुम
दुनिया को बदल डालो मजदूर किसानो तुम
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.................................मयकश आज़मी

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